Wednesday 13 April 2016

एक याद डॉ. कलाम के नाम

मेरी क्या जुर्रत जो उस इंसान के बारे में एक शब्द भी लिख सकुं जिसके विचार ,सोंच और समझ को पुरी दुनिया सलाम करती है| विनम्र दिल वाले जिस इंसान में बच्चों के लिए कभी न खत्म होने वाला प्यार था। जिसकी कुछ नया जानने के लिए कभी न खत्म होने वाली खोज जिसे दूसरों से अलग करती है।
वो इंसान कोई और नहीं वही है मिसाइल मैन, भारत रत्न , पिपुल्स पर्सिडेंट,
और एपीजे अब्दुल कलाम.

एक याद डॉ. कलाम के नाम
        

राष्ट्रपति बनाने ढूंढना पड़ा था डॉ. कलाम को, तोड़ी राष्ट्रपति भवन की परंपराएं

भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए बड़े-बड़े नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। राजनीतिक पार्टियों के गुणा-भाग चलते हैं सो अलग। जिस समय डॉ. कलाम को राष्ट्रपति बनाने की चर्चा चली इसकी उन्हें भनक तक नहीं थी। कलाम उस दौरान चेन्नई विश्वविद्यालय के होस्टल के एक छोटे-से कमरे में रह रहे थे। एनडीए सरकार ने फैसला किया कि कलाम राष्ट्रपति पद के उनके उम्मीदवार होंगे। इस बात की सूचना देने के लिए उन्हें ढूंढना पड़ा था। कलाम ने राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन की कई परंपराओं को बंद करा दिया।

अपनी पुस्तक टर्निंग प्वाइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज में उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि वह कैसे भारत के 11वें राष्ट्रपति बनें। उन्होंने लिखा है कि अन्ना विश्वविद्यालय के सुंदर वातावरण में 10 जून 2002 की सुबह और दिनों की तरह ही थी, जहां मैंने दिसम्बर 2001 से काम करना शुरू किया था। विश्वविद्यालय के बड़े और शांत परिसर में वहां के प्रोफेसरों और शोध विद्यार्थियों के साथ काम करते हुए मेरा अच्छा समय बित रहा था।

मेरे क्लास में केवल 60 बच्चों के बैठने की ही व्यवस्था थी, लेकिन उसमें करीब 350 से ज्यादा छात्र बैठा करते थे और कोई ऐसा तरीका भी नहीं था जिससे उनको रोका जा सके। मेरा काम परास्नातक के युवा छात्रों की सोच को जानना और मैंने जो राष्ट्रीय स्तर पर काम किए उनके तजुर्बों को उनसे साझा करना था। मुझे अपने 10 लेक्चर के जरिए उनको यह समझाना था कि समाज को बदलने के लिए तकनीक का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।

और क्या लिखा है डॉ. कलाम ने

वह मेरा नौवां व्याख्यान था जिसका शीर्षक 'विजन टू मिशन' था जिसमें कुछ मामलों का अध्ययन भी शामिल था। मैंने जैसे ही अपना व्याख्यान खत्म किया मुझे कई सवालों के जवाब देने पड़े। इसके अलावा मेरे क्लास की अवधि 1 घंटे से बढ़ाकर 2 घंटे करनी पड़ी। इसके बाद मैं और दिनों की तरह अपने कार्यालय में आ गया और शोध छात्रों के साथ बैठकर खाना खाया। हमारा कुक प्रसंगम ने हमें अच्छा खाना खिलाया।

खाने के बाद मैं अपने दूसरे क्लास के लिए गया और फिर शाम को वापस अपने कमरे में आ गया। मैं जब वापस आ रहा था तो उसी समय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर ए कलानिधि पीछे से आए और मेरे साथ चलने लगे। उन्होंने कहा कि आज सुबह से ही मेरे कार्यालय कई फोन आ चुके हैं और कोई है जो आपसे बात करने के लिए काफी उत्सुक है। मैं जैसे ही अपने कमरे में पहुंचा, मैंने पाया कि मेरा फोन बज रहा था। मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, 'प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं।'

अभी मैं फोन पर प्रधानमंत्री से बात करने का इंतजार कर रहा था इसी दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु ने मेरे सेलफोन पर फोन किया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मुझे फोन करने वाले हैं। उन्होंने यह भी कहा, 'कृपया ना मत कहिएगा।' जब मैं नायडु से बात कर रहा था तभी फोन पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज सुनाई दी। उन्होंने पूछा, 'कलाम, आपका शैक्षणिक जीवन कैसा है?' मैंने जवाब दिया, 'बिल्कुल अच्छा।'

वाजपेयी जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे पास आपके लिए एक जरूरी खबर है। मैं अभी एनडीए के सभी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की विशेष बैठक से होकर आ रहा हूं। हमने निर्णय लिया है कि देश को राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है। मुझे आपकी सहमति के रूप में केवह 'हां' चाहिए 'ना' नहीं।

हम सर्वसम्मति से करेंगे काम

कमरे में आने के बाद मुझे अभी बैठने का मौका भी नहीं मिला था। मेरे सामने भविष्य की अलग-अलग तस्वीरें दिखाई दे रही थीं। उनमें से एक यह था कि मैं शिक्षकों और छात्रों से घिरा हुआ हूं। मैंने वाजपेयी जी से निर्णय लेने के लिए दो घंटे का समय मांगा और कहा कि मेरे नाम पर राजनीतिक पार्टियों की सहमति भी होनी चाहिए। तो उन्होंने कहा कि पहले आप सहमत होइए, फिर हम सर्वसम्मति पर काम करेंगे।

इन दो घंटों के दरमियान मैं अपने करीबी मित्रों को 30 फोन कॉल किए जिनमें कुछ शैक्षणिक क्षेत्र से, कुछ नागरिक सेवाओं और कुछ राजनीति के क्षेत्र से जुड़े हुए थे। उस वक्त मेरे सामने दो दृश्य उभर रहे थे। पहला यह कि मैं अपने शैक्षणिक जीवन का आनंद ले रहा था और यह मेरा शौक भी था उसे मैं छोड़ना नहीं चाहता था। दूसरा यह कि भारत 2020 विजन को जनता और संसद के सामने रखने का इससे बढ़िया अवसर नहीं मुझे फिर नहीं मिलने वाला था।

दो घंटे के बाद मैंने प्रधानमंत्री जी से बात की और कहा, 'वाजपेयी जी, मैं एक विशेष उद्देश्य के लिए अपनी स्वीकृति दे रहा हूं और मैं सभी पार्टियों का प्रत्याशी बनना चाहूंगा।' उन्होंने कहा, 'ठीक है, हम इस पर काम करेंगे, धन्यवाद।' करीब 15 मिनट में ही यह संदेश पूरे देश में फैल गया और मेरे पास ढेर सारे फोन आने लगे। मेरी सुरक्षा बढ़ा दी गई और ढेर सारे लोग मुझसे मिलने के लिए मेरे कमरे में जमा हो गए।

पहली बार मीडिया से मिले

राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में अपना आवेदन करने के बाद 18 जून को जब मैं पहली बार मीडिया से मुखातिब हुआ तो मुझसे कई तरह के सवाल पूछे गए। इसमें गुजरात दंगे और अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सवाल भी शामिल थे। राष्ट्रपति के तौर पर मेरा देश के लिए क्या विजन होगा इस पर भी सवाल पूछे गए।

इन सभी मुद्दों लिए मैंने शिक्षा और विकास के रास्ते ही समाधान की बात कही। चेन्नई से जब मैं 10 जुलाई को दिल्ली आया तो यहां तैयारियां पूरे जोर से चल रही थीं। बीजेपी के प्रमोद महाजन मेरे चुनाव एजेंट थे। मेरा फ्लैट बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन सुविधाजनक जरूर था।

मैंने अपने हॉल में ही अपना काम शुरू कर दिया और कुछ समय बाद वहां एक इलेक्ट्रानिक कैंप कार्यालय बन गया। मैंने लोकसभा और राज्यसभा के करीब 800 सांसदों को बतौर राष्ट्रपति देश के प्रति मेरा क्या नजरिए रहेगा उससे अवगत कराया और मुझे वोट करने की अपील की। इसका नतीजा यह हुआ कि मुझे बड़े अंतर से 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुन लिया गया।

सामने थी सबसे बड़ी समस्या

इसके बाद मेरे सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। 25 जुलाई को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अतिथियों की सूची बनाने में मुझे काफी दिक्कत हुई। संसद के केंद्रीय हॉल में केवल एक हजार लोगों की व्यवस्था थी। इनमें से सभी सांसदों, राजनयिकों और पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के अतिथियों की संख्या मिलाने के बाद केवल 100 अतिरिक्त लोगों की जगह वहां बची थी।

हम इसको बढ़ाकर इसकी संख्या 150 तक ले गए। अब इन 150 लोगों में किसको शामिल करूं यह भी एक चुनौती थी। मेरे परिवार के लोगों की संख्या ही 37 थी। इसके बाद मेरे भौतिक के शिक्षक चिन्नादुरई, प्रोफेसर केवी पंडलई और इनके अलावा मेरे दोस्त कई अन्य प्रोफेसर, पत्रकार मित्र, नृत्यांगना मित्र, उद्योगपति और न जाने कितने ही लोग मेहमानों की सूची में शामिल थे।

इसके अलावा इनमें देश के सभी राज्यों से 100 बच्चों को भी शामिल किया गया जिनके लिए अलग से एक पंक्ति बनाई गई। वह दिन बहुत गरम था लेकिन सभी लोग औपचारिक परिधानों में ऐतिहासिक केंद्रीय हॉल में पहुंचे और मेरे शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बने।

देर से खाते थे खाना, कई प्रथाएं कराई बंद

डॉ. कलाम रात का खाना देरी से खाया करते थे। राष्ट्रपति के प्रोटोकाल के हिसाब से जब तक वह भोजन नहीं कर लें तब तक कोई भोजन नहीं करता था। जब कलाम राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस प्रथा को बंद करवा दिया। उनके लिए महज एक रसोईया रात को देर तक जागता था। वह उन्हें खाना खिलाकर सो जाता था। इसके बाद उसकी दूसरे दिन सुबह की छुट्टी होती थी।

जूते कभी नहीं बंधवाए

उन्होंने राष्ट्रपति भवन में महामहिम के जूते के बंद बांधने की परंपरा भी बंद कराई। जब पहली बार डॉ. कलाम के जूते के बंद बांधने एक कर्मचारी पहुंचा तो वे बेहद नाराज हुए और कहा कि वे आज तक अपने जूते के बंद खुद ही बांधते आए हैं और आगे भी बांधेंगे।

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